Friday, January 8, 2010

जनता के लिए पुलिस बन चुकी है राक्षस

हरियाणा में साल भर के अंदर आधा दर्जन महिलाओं ने पुलिस मुख्यालय के सामने जहर खाकर आत्मदाह कर लिया। अभी ताजातरीन मामला हांसी की लक्ष्मी देवी का है। नए साल के पहले महीने में ही छह जनवरी बुधवार को उसने चंडीगढ़ में डीजीपी कार्यालय के बाहर जहर खाकर आत्महत्या कर ली और साथ ही पुलिस की घोर जनता विरोधी घिनौने चरित्र को उजागर कर दिया। देश और हरियाणा में यह पहला मामला नहीं है।
हरियाणा पुलिस मुख्यालय के सामने पिछले साल रोहतक की सरिता ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। पुलिस पर आरोप है कि उसने सरिता के पति को अवैध हिरासत में रखा हुआ था। थाने में जब वह अपने पति का हाल जानने पहुंची तो न केवल उसके साथ दुष्कर्म किया गया, बल्कि यातनाएं भी दी गईं। रोहतक पुलिस के इस क्रूर और वहशियाना रवैया देख सरिता ने डीजीपी कार्यालय में जहर खाकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली। इसके बाद करीब आधा दर्जन ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
यमुनानगर की शमशीदा बेगम पुलिस उत्पीडऩ का शिकार हो चुकी है। पुलिस की पिटाई से उसका गर्भ गिर गया था। जींद का कुंडू दंपति भी न्याय की उम्मीद में आत्महत्या का प्रयास कर चुका है। रोहतक में आईजी आफिस के बाहर पानीपत की अलका ने आत्महत्या कर ली। उसका पति किसी तरह बच गया था। अलका का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह अपने साथ दुष्कर्म के आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रही थी। नारनौल की पूजा मान ने भी न्याया की आस टूटने पर कुएं में कूदकर जान दे दी थी।

पश्चिम बंगाल में लालगढ़ का माओवादी समर्थित पुलिस संत्रास विरोधी समिति का आंदोलन इसी का आंदोलन है। धनाढ्यों और सफेदपोशों के सामने दुम हिलाने वाली पुलिस का जनता के के साथ वहशियाना अत्याचार समझ के परे भले हो लेकिन इससे इतना तो साफ हो जाता है कि यह पुलिसिया तंत्र जनता को गुलाम बनाए रखने के लिए खड़े किए गए हैं। भगत सिंह की बात सही साबित होती लगती है कि गोरे चले भी जाएं तो भी काले अंग्रेज जनता को गुलाम बनाए रखेंगे। और शोषण का चरखा बदस्तूर चलता रहेगा। इस उत्पीड़न से जनता अपने-अपने तरीके लड़ रही है। कोई शांतिपूर्वक ढंग से सालों धरना दे रहा है तो कहीं लाठी और तीर-कमान निकल आए हैं।
इस लड़ाई का दुखद पहलू यह है कि एक बड़े पैमाने पर लोग एकाकी संघर्ष में टूट कर कायराना आत्महत्या की ओर रुख कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जहां जनता अपनी इज्जत, जिंदगी और सामाजिकता को बचाने की लड़ाई कर रही है तो शाशन में बैठे काले अंग्रेज इसका दमन कर रहे हैं, न्याय की बात हशिए में चली गई है।

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