जहां तक मेरा अनुमान है मीडिया उद्योग में कुछ सोचने वाले पत्रकार मजदूर भाई बचे होंगे तो कहीं न कहीं तो एक्टिविज्म से जुड़े होंगे। इसी नाते इच्छा होती है ऐसे लोगों को सम्मानित किया जाए इसलिए नहीं कि वे कुछ सोच पाते हैं बल्कि इसलिए कि वे चुप हैं। १ मई को आईए इसी तरह मनाएं और चुप रहने वाले पत्रकार मजदूर बंधुओं का स्वागत करने की तैयारी करें।
क्यों मनाएं दिवस
थकी, कुढ़ती, कसमसाती ऊंघती पत्रकारों की आबादी ने अपने बौद्धिक क्षमता का कापी राइट लंकाधिपितयों को दे दिया है। अब उनकी सारी क्षमता उनके दुगॆ बनाने में ही लग गई है। जी कसमसाता है तो एकाध ब्लॉग-व्लॉग लिख दिया या चंदा देकर पाप काट लिया। मई दिवस मनाना भी पाप काटने जैसा है। मना लिया एक दिन के लिए द्रवित हो गए।
Thursday, May 1, 2008
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