श्रम विवादों में यूनियनों के पक्ष को अहम बताया
नई दिल्ली, एजेंसी : एक जमाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने श्रम विवाद मामलों में मजदूरों के पक्ष में निणर्य दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि श्रम विवाद मामलों में फैसला सुनाए जाने से पहले अदालतों में आवश्यक रूप से पीडि़त श्रमिकों या मजदूर संगठनों के पक्ष को सुना जाना चाहिए अन्यथा यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने हड़तालों से लेकर मजदूरों के हकों के खिलाफ कई बड़े बड़े निर्णय दिए हैं। यहां तक यूनियन की गतिविधि पर भी टिप्पणी की थी। इसलिए मजदूरों को सुप्रीम कोर्ट से आस्था उठने लगी थी। हालांकि इस निर्णय से भी मजदूरों के श्रम विवादों में कोई खास उम्मीद नहीं बंधती है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजु और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने कहा कानून श्रम कानून का उद्देश्य श्रमिकों को सुविधा प्रदान करना है। इसलिए सामान्य तौर पर श्रम कानून के तहत सभी मामलों में श्रमिकों या कम से कम उनका प्रतिनिधित्व करने वालों या मजदूर संगठनों को एक पक्ष बनाया जाना चाहिए।अदालत ने त्रावणकोर स्थित कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) अदालत को कुछ मजदूरों का पक्ष सुनने का निर्देश दिया जिन्हें फर्टिलाइजर केमिकल त्रावणकोर लिमिटेड ने चिकित्सा बीमा सुविधा प्रदान करने से इंकार कर दिया था। तर्क यह दिया गया था कि इन श्रमिकों की योग्यता इस योजना का लाभ पाने के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे पहले, इस मामले में ईएसआई अदालत ने विवाद पर कोई निर्णय जारी नहीं किया था और केरल हाईकोर्ट ने कंपनी से श्रमिक को ईएसआई सुविधा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। यह श्रमिक गोदाम में सामान ढोने का काम करते थे। इस मामले की सुनवाई के दौरान न तो ईएसआई अदालत और न ही हाईकोर्ट ने पीडि़त श्रमिकों की जांच परख की।
ऐसा नहीं कि यह मामला पहली बार हुआ है। जिन मजदूरों की कमाई से देश के उद्योगपति सुपर मुनाफा निचोड़ रहे हैं उनके बुनियादी हकों को मारने में देश की न्यायपालिका पूंजीपतियों के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है।
Friday, September 25, 2009
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