किश्त-एक
कामनवेल्थ गेम्स 2010 दिल्लीखर्च-2264 करोड़ रुपए (22 अरब 64 करोड़)
झारखंड का कुल बजट 8000 करोड़ रुपए (80 अरब रुपए)
दिल्ली मेट्रो रेल बजट -1000 करोड़ रुपए (10 अरब रुपए)
देश की 85 फीसदी जनता महज जी पाने लायक परिस्थितयों में रहकर खेती-किसानी से लेकर उद्योगों, फैक्ट्रियों, कारखानों, खदानों, निर्माण कार्यों में लगी हुई है। यह आबादी या तो किसान है या मजदूर है या छोटे-मोटे व्यवसाय या सेवा क्षेत्र में लगी हुई है। इस पूरी आबादी के लिए न तो ठीक से दो जून की रोटी मयस्सर है, न इनके सेहत और शिक्षा का कोई प्रबंध है। बेहद नारकीय जीवन जीते हुए यह आबादी जुटी हुई है देश को आगे बढ़ाने में और बाकी 15 फीसदी उसकी गाढ़ी कमाई का कैसे सदुपयोग कर रहे हैं यह कामनवेल्थ गेम्स (राष्ट्र मंडल खेलों) पर होने वाले खर्चे से पता चलता है। यह खेल देश का नाम रौशन करने के बहाने हो रहा है। इसमें सभी को रेवड़ी मिलनी है। कंपनियों को, ठेकेदारों को, विग्यापन वालों को, नेताओं को, उच्च वर्ग को। पैसे को पानी की तरह बहाने पर सभी सहमत हैं।
लेकिन कालाहांडी, छत्तीसगढ़, कंधमाल, लालगढ़, पलामू, झाबुआ या फिर कांदिवली, दादर (मुंबई) व शादीपुर, महरौली (दिल्ली) जैसे इलाकों में रहने वालों के लिए अस्पताल, स्कूल, शुद्ध पानी, बिजली, सुरक्षा और सम्मान की जिंदगी के लिए सरकारी खजाने से फूटी कौड़ी भी निकलने में सालों बीत जाएंगे! यह पूरी आबादी जीने की न्यूनतम शर्तें भी खो चुकी है। पूरी आबादी को हाशिए पर डाल दिया गया है। उन्हें सिर्फ अधिकार है तो जानवरों की तरह लगातार खटने का और इसके बदले महज जी सकने भर का वेतन। ऐसे में कामनवेल्थ गेम्स पर पानी की तरह पैसा बहाने का कोई तर्क समझ में नहीं आता है। क्या आपको आता है?
Monday, October 12, 2009
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