Wednesday, September 23, 2009

भारत को 4.3 अरब डॉलर का कर्ज़

क्या यह कर्ज किसानों को डूबने से बचा पाएगा? बेरोजगारों को नौकरी दिला पाएगा? मजदूरों की गलाजत भरी जिंदगी में सुधार ला पाएगा?
विश्व बैंक ने भारत को 4.3 अरब डॉलर का कर्ज़ देने का एलान किया है. इसमें से दो अरब डॉलर भारत के सरकारी बैंकों को सुदृढ़ करने के लिए दिया गया है। जाहिर सी बात है ये बैंक केवल देश के नेताओं और उद्योगपतियों की सेवा में लगे हुए हैं और अंततः यह पैसा घूम फिर कर उन्हीं की सेवा में लगेगा। जनता फिर भी कंगाल ही रहेगी। सोचना होगा कि यह कैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है?

विश्व बैंक का अंनुमान है कि 2009 भारत की आर्थिक रफ़्तार पिछले दो सालों के मुक़ाबले धीमी होगी और वृद्धि की दर 5.5 प्रतिशत पर आ जाएगी. दो साल पहले ये दर 10 प्रतिशत के आसपास थी। विश्व बैंक के भारत निदेशक रॉबर्टो ज़ागा ने कहा है, ``भारत को मदद करने का ये एक अहम समय है।’’ यह विकास दर यहां कृषि में नहीं है बीमा सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर, आटोमोबाईल, कम्यूनिकेशन सेक्टर आदि के लिए है। यह हाशिए पर जा चुकी दो तिहाई आबादी के लिए सिर्फ लालीपाप भर है। विश्व बैंक की हमेशा से नीति रही है इस हाथ दे उस हाथ ले। सभी जानते हैं कि अमेरिका के इशारे पर विश्वबैंक काम करता है। एक तरफ विश्व बैंक कर्ज देगा तो दूसरी तरफ इन्हीं पैसों से अमेरिका भारत को हथियार बेचने का दबाव डालेगा। वैसे भी भारत एशिया में सबसे ज्यादा हथियारों पर खर्च करने वाला देश है। विमान वाहक पोत गोर्शकोव की कीमत 1.82 अरब डालर (करीब 89 अरब रुपए) पर आ पहुंची है। क्या इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इस धन से देश में एम्स जैसे कितने अस्पताल बनाए जा सकते हैं या कितने तकनीकी संस्थान खोले जा सकते हैं? या कितने गांवों में बिजली और पानी की बुनियादी सुविधा मुहैया कराई जा सकती थी?
कहा जा रहा है कि इस कर्ज़ का इस्तेमाल मुख्य रूप से आधारभूत ढांचे को बेहतर करने वाले कार्यक्रमों में होगा और साथ ही उन कंपनियों की मदद के लिए भी होगा जिन्हें कर्ज़ की ज़रूरत है। लेकिन यह पहले से तय है कि सबसे ज्यादा बुरे दिन देख रहे किसानों को आखिर कफनखसोट साहुकार ही नसीब होंगे।
रॉबर्टो ज़ागा का कहना था कि भारत के लिए आर्थिक मंदी का सबसे बुरा दौर शायद पीछे छूट गया हो लेकिन हालात में जो सुधार हो रहे हैं वो कितने स्थाई हैं उस बारे में कुछ कहना मुश्किल है।
ये कर्ज़ भारत के अनुरोध पर जारी किया गया है। भारत सरकार का कहना था कि उन्हें आर्थिक मंदी से उबरने के लिए और मदद की ज़रूरत है। बैंकिंग क्षेत्र के लिए जो दो अरब डॉलर की मदद है उससे बैंकों को पूंजी की सुरक्षा और एक ढाल प्रदान करने की बात है। बैंकिंग सेक्टर जो सुपर प्राफिट निचोड़ रहा है उसमें भी उसे कर्ज लेकर झोली भरना कहां तक जायज है?
हालांकि बात तो है कि इस कर्ज़ में से एक अरब डॉलर भारत की बिजली प्रवाह प्रणाली को बेहतर करने में लगाया जाएगा लेकिन जो मंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं उनके नाम पर लिया गया कर्ज रूलिंग क्लास सरेआम अपने हित में इस्तेमाल करेगा।
विश्व बैंक ने इसी तरह के कर्ज़ वियतनाम, हंगरी, लाटविया और नेपाल के लिए भी जारी किया है।
यानी मंदी भी भारतीय पूंजीपतियों के लिए सोने की बरसात ले कर आई है।

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