जनता से कितनी दूर हो गई हैं भाकपा और माकपा जैसी नकली कम्युनिस्ट पाटिॆयां, आशा है इसका सबूत जनता को परमाणु करार को लेकर उनके लम्बे ड्रामे के बाद मिल गया होगा। सत्ता के केंद्र में पहली बार इतने लम्बे समय तक रहे वामदलों के बारे में जनता को अब पूरी तरह साफ हो गया है कि क्यों ये दिन-ब-दिन वैचारिक रूप से दीवालिया होते जा रहे हैं।
महंगाई से बड़ा है करार का मुद्दा?
यूपीए के शासनकाल में लगातार महंगाई बढ़ती रही। पहले, तीन महीने के अधिकतम स्तर पर पहुंची, फिर तीन साल के अधिकतम स्तर पर और फिर तेरह साल के अधिकतम स्तर पर। लेकिन इन्होंने कभी इसे मुद्दा नहीं बनाया। यूपीए के शासनकाल में ही जनता के लिए जीना और मुशि्कल होता गया लेकिन परमाणु करार का धूम्र परदा खड़ा कर इन नकली वामपंथियों ने लोगों को बरगलाया। जनता को गुमराह किया कि मुद्दा महंगाई नहीं है, मुद्दा करार है।
माकपा... लाल रंग की भाजपा
आखिरकार जनता को बेवकूफ बनाने का माकपा का ड्रामा खत्म हुआ। अब तो ये भाजपा की तरह यह भी नहीं कह सकती कि एक मौका दो...सुधार देंगे। भाजपा ने १९९८ में परमाणु विस्फोट कर इसे एनडीए की सबसे बड़ी उपलबि्धयों के रूप में गिनाया। आगे बढ़ कर इसे हिंदू बम के रूप में प्रचारित कर इसे साम्प्रदायिक माइलेज लेने की कोशिश की। आज भी उसके लिए यह सबसे बड़ा हथियार है। लेकिन वामपंथी क्यों परमाणु बम परीक्षण का अधिकार को बनाए रखना चाहते हैं? यह कौन सी आमजन की समस्या है।
भाजपा-माकपा के पास बस एक ही मुद्दा
जिसतरह भाजपा ने परमाणु बम परीक्षण का छद्म मुद्दा बनाकर जनता को मूखॆ बनाने की कोशिश की। ठीक उसी राह पर चलते हुए माकपा और उसके सहयोगियों ने जनता को गुमराह किया। भाकपा और अन्य पाटिॆयों में अब कोई फकॆ नहीं बचा है, यह अब उन्हें भी साफ हो गया है जो असमंजस में थे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment