Monday, June 30, 2008

अखबारों में लग गया है टीजी का घुन


पत्रकारिता को टीजी का घुन लग गया है। अगर आप मिशन व एथिक्स को मानते हैं, सच्चाई और आपका चोली दामन का साथ है तो आप पुरानी सोच या डाऊन मारकेट हैं और आप इस कचरे से बाहर फेंक दिए जाएंगे जैसे इतिहास को कचरे में फेंक दिया गया है। प्रिंट मीडिया में सच्चाई के मायने काफी बदल गए हैं। यहां टीजी के मुताबिक सच्चाई का चेहरा भी बदल दिया जाता है। सामाजिक सरोकार खास वगॆ के पाठक हैं, जनता नहीं। जो पाठक नहीं है वे भाड़ में जाएं। जो खरीदार हैं, जो घरेलू कचरा जितना ज्यादा पैदा करते हैं वे ही मनुष्य हैं।
वफादार हैं अपने टीजी के लिए
हर अखबार का एक टीजी है यानी टारगेट ग्रुप। मतलब किस वगॆ के प्रति वफादार होना है? सारे अखबार नवधनाढ्य मध्यवगॆ को अपना टीजी बनाने में हांफ रहे हैं। उन्हें पता है वही सबसे ज्यादा खरीदरी करता है वही सबसे ज्यादा खाता है वही सबसे ज्यादा पहनता है वही सबसे ज्यादा कुल्लू मनाली ज्यादा है। आंध्रप्रदेश में किसी किसान ने आत्महत्या कर ली है, दिल्ली में कोई मजदूर फैक्टरी में जल कर मर गया, कोयले की खादानों में मजदूर फंस गए या फिर ढाबे पर खुद को ढोता बचपन उसके सरोकार में नहीं हैं।
ऐसी पत्रकारिता को क्या कहेंगे आप?

Friday, June 27, 2008

chuttiya hui khatm
School chalo ....